कोरोना की वैक्सीन बंदरों पर सफल हो गयी, इंसानों के लिए गुड न्यूज़ किस महीने आने वाली है?

कोरोना की वैक्सीन बंदरों पर सफल हो गयी, इंसानों के लिए गुड न्यूज़ किस महीने आने वाली है? 




जब कोरोनावायरस की वैक्सीन की जद्दोजहद चल रही है, उसी समय Oxford विश्वविद्यालय सफल वैक्सीन की ओर एक और क़दम बढ़ा चुका है. विश्वविद्यालय का सबसे तेज़. और काम में कहीं रुकावट नहीं आई तो दुनिया के बड़े हिस्सों में आगामी सितम्बर तक वैक्सीन तैयार मिलेगी.
हम Oxford के जेनर संस्थान की बात कर रहे हैं. यहां डॉक्टर और वैज्ञानिकों की एक टीम लगातार कोरोनावायरस की वैक्सीन तैयार करने में जुटी हुई है. वैक्सीन को तो तैयार भी किया जा चुका है. सबसे पहले बंदरों पर इसका परीक्षण किया गया. और आम बंदर नहीं. Rhesus बंदरों पर. इन बंदरों की ख़ास बात इनकी जीनोम संरचना है, जो इंसानों के बहुत क़रीब है. तो बंदरों को वैक्सीन दी गयी. इसके बाद उन्हें कोरोनावायरस के हैवी डोज़ दिए गए. लेकिन एक महीने हो गये. इनमें से एक भी बंदर कोरोनावायरस से अब तक संक्रमित नहीं हुआ. लेकिन यही पर आता है सबसे ज़रूरी सवाल. कैसे बनी ये वैक्सीन.
आम तौर पर वैक्सीन में वायरस का ही कमज़ोर रूप डाला जाता है. ये इंसान के शरीर में जाता है, और उस रोग के खिलाफ़ रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करता है. Oxford में कुछ अलग किया गया. यहां पर एक मिलते-जुलते वायरस को लिया गया. उसके प्रभाव को ख़त्म कर दिया गया. उसके बाद इस प्रभावहीन वायरस में परिवर्तन किए गए. कोरोनावायरस के कुछ हिस्से इसमें मिलाए गए. कुल मिलाकर वायरस निष्प्रभावी. इसको वैक्सीन की तरह इंजेक्शन में डालकर लगाया गया. वैक्सीन का नाम ChAdOx1 nCoV-19. ये वैक्सीन शरीर में जाकर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाएगी. बाद में अगर असल कोरोनावायरस शरीर में जगह बनाने की कोशिश करेगा, तो यही रोग प्रतिरोधक क्षमता वायरस को चलता कर देगी.
क्या ये नयी टेक्नीक है?
नहीं. लेकिन ये ऐसी टेक्नीक है, जिसके सफल होने के चांस सबसे ज़्यादा जताए जा रहे हैं. हम क्यों कह रहे हैं ऐसा? क्योंकि Oxford के इन्हीं वैज्ञानिकों की टीम ने इसके पहले ईबोला, मर्स और मलेरिया की वैक्सीन पर काम किया है. इसी टेक्नीक से. और ह्यूमन ट्रायल में लेकर गए तो बहुत हद तक आशाजनक परिणाम देखने को मिले. और Oxford ही नहीं. अमेरिका की कम्पनियों मॉडर्ना और इनोवीयो ने भी इसी तरीक़े से वैक्सीन का निर्माण किया. और अब वो लोग भी क्लिनिकल ट्रायल के दौर में हैं. चीन की कम्पनी CanSino ने भी इसी तरीक़े से एक वैक्सीन बनायी है. और क्लिनिकल ट्रायल कर रहे हैं. लेकिन चीन में क्लिनिकल ट्रायल शुरू करने में परिणाम दुरुस्त नहीं हो सकते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि चीन में अब कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा नीचे जा रहा है. और कड़वी सचाई है कि वैक्सीन कितना कारगर है, ये पता करने के लिए, कोरोना का और फैलना ज़रूरी है. वैज्ञानिक ख़ुद कहते हैं. जेनर इंस्टिट्यूट की डायरेक्टर प्रोफेसर एड्रीयन हिल कहती हैं,
“हम अकेले ऐसे लोग हैं, जो चाहते हैं कि अगले कुछ हफ़्ते तक इन्फ़ेक्शन बढ़ता रहे. वैक्सीन का प्रभाव देखने के लिए ये ज़रूरी है.”
यानी अगर इन्फ़ेक्शन स्लो होता है, तो बहुत हद तक मुमकिन है कि वैक्सीन के प्रभाव का सही अन्दाज़ न लग पाए.
टेस्ट का दायरा बढ़ाने की ज़रूरत
अब अगर यूनाइटेड किंगडम — जहां Oxford विश्वविद्यालय मौजूद है — में इन्फ़ेक्शन आने वाले समय में कम होता है, तो टेस्ट का दायरा बढ़ाने की ज़रूरत है. UK सरकार से तो बात की जा रही है कि देश में बड़े स्तर पर कोरोनावायरस की वैक्सीन की जांच में सहयोग करें. साथ ही दूसरे देशों सम्पर्क भी किया जा रहा है, मिडल ईस्ट के कुछ देश हैं. कुछ अफ़्रीकी देश हैं. बड़े लेवल पर इस इक्स्पेरिमेंटल वैक्सीन के उत्पादन से वहाँ के लोगों पर भी जांच की जाएगी. ताकि अलग-अलग संरचना के लोगों पर वैक्सीन के प्रभाव को देखा जा सके. इसके लिए हर देश में कुछ इंसानों को वैक्सीन का डोज़ दिया जाएगा. फिर उनमें प्रभाव देखा जाएगा.
बारी आई इंसानों की
Oxford में बंदरों पर मिली सफलता के बाद वैज्ञानिकों की घोषणा की कि अब ह्यून ट्रायल होंगे. मतलब, सीधे इंसानों पर कोरोनावायरस के वैक्सीन की जांच होगी. इसके पहले चरण के लिए 1100 लोगों को चुना गया, जो अपनी इच्छा से इस ट्रायल में भाग लेने आए. 22 अप्रैल 2020 को दो लोगों को वैक्सीन का पहला डोज़ देकर ट्रायल शुरू किया गया. और इस ख़बर के लिखे जाने तक 550 लोगों को असल वैक्सीन और 550 लोगों को प्लसीबो दिया गया. अब आप पूछेंगे प्लसीबो क्या होता है? प्लसीबो मतलब कुछ भी नहीं. मसलन समझिए कि आप कोई मामूली-सी बीमारी लेकर डॉक्टर के पास जायें, और डॉक्टर आपको चीनी की दो मीठी गोलियां दवा बताकर खिला दे. बस यही धोखे वाली दवा या टीके को प्लसीबो कहते हैं.
अब क्या होगा?
अगले महीने यानी मई में Oxford के वैज्ञानिक क्लिनिकल ट्रायल का फ़ेज़ 2 और 3 एक साथ शुरू करेंगे. 5000 लोगों पर. अब इसके बाद इंतज़ार होगा. ये लोग आम रहनसहन के चलते प्राकृतिक तरीक़े से कोरोनावायरस के सम्पर्क में आयेंगे. वैज्ञानिक आशा लगाए बैठे हैं कि जिन लोगों को प्लसीबो दिया गया है, उन्हें कोरोनावायरस का इन्फ़ेक्शन पकड़ लेगा. और जिन्हें असल टीका लगाया गया, वे संक्रमण से बचे रहेंगे. एड्रीयन हिल ने न्यूयॉर्क टाइम्स से बातचीत में कहा,
“अगर ऐसा हो जाता है, तो हम एक छोटी-सी पार्टी करेंगे, और दुनिया को बता देंगे कि हमने सफलता पा ली है.”
इस सब में भारत के लिए क्या है?
हमने पहले ही बता दिया है. फिर से बता रहे हैं. पुणे के Serum Institute of india (SII) ने कहा है कि अगले 2-3 हफ़्ते में — यानी मई महीने से — कोरोना की वैक्सीन बनाना शुरू कर देंगे. SII इस समय दुनिया के कुछ सबसे बड़े वैक्सीन निर्माताओं में से एक है. और Oxford में कोरोना की वैक्सीन पर काम कर रहे लोगों के लगातार संपर्क में है. SII के CEO आदर पूनावाला ने कहा है कि अगले महीने यानी मई से वैक्सीन का निर्माण शुरू करने के फ़ैसले में एक रिस्क है. क्या रिस्क है? उन्होंने अपने मीडिया स्टेटमेण्ट में बताया,
“SII वैक्सीन बनाना शुरू कर रहा है. ये सोचते हुए कि सितम्बर-अक्टूबर में Oxford ट्रायल के ख़ुश करने वाले नतीजे सामने आ जायेंगे. बिना नतीजों के वैक्सीन निर्माण शुरू करना एक रिस्क है. लेकिन हम ये तैयारी इसलिए कर रहे हैं ताकि अगर वैक्सीन ह्यूमन ट्रायल में सफ़ल हो गयी, तो हमारे पास पहले से कुछ डोज़ मौजूद होंगे. और उस समय भी हम वैक्सीन का निर्माण कर रहे होंगे, जिससे बड़ी मात्रा में लोगों को वैक्सीन मिल सकेगी.”
यानी सबकुछ एक उम्मीद पर. इंसानों को बचाने की उम्मीद पर. उनकी ज़िंदगी बचाने की उम्मीद पर. एक वायरस पर जीत पाने की उम्मीद पर टिका हुआ है.

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